समय हो गया

Saturday, April 26, 2008

'तिब्बत' चीनी खिलौना

इस्तेमाल करो और भूल जाओ जी हाँ यही कहाँ जाता है चीनमे बने सस्ते उत्पाद के बारे मे , पहली नज़र मे मुतासिर करने वाली चीज़ ज्यादातर नज़र का धोका होती है ,क्या ये चीन के बरे मे सही नही है ?



गुलामी के दौर से गुज़रते हुए चीन ने पश्चिमी देशों से चाहे कुछ लिया हो या न लिया हो पर एक चीज़ जो उसने ग्रहण की वो है दोहन की मानसिकता .१९४९ के बाद कम्युनिस्ट क्रांति के प्रभावों का एशिया मे विस्तार और साम्राज्यवादी चीन की अवधारणा इसी दोहन की मानसिकता का परिणाम है ।



किसी भी देश की ताक़त का आधार उसका आर्थिक सम्रिधिकरण है और इसको बनाए रखने के लिए संसाधनों की निरंतर उप्लब्धता सुनिश्चित करना अत्यन्त आवश्यक है इसलिए विकसित और अर्धविकसित देश प्राप्त संसाधनों का बेतहाशा दोहन कर रहे हैं और नए संसाधनों की खोज मे जुट गए हैं .कहना ग़लत न होगा कि साम्राज्यवादी चीन कि इसी बदनीयत का शिकार तिब्बत भी हो आर्मी के।



तिब्बत घुसने साथ हओ ,गया इस छेत्र की se दौर चीएँ ने नकेवल यहाँ प्राकृतिक संसाधनों दोहन करके चीन की taiwan . 1951 me china ki people

liberation army ke tibbet मे ghusne के saath ही शुरू ho gaya is chetra ki बदनसीबी का daur । cheeen ne na kewal yahan के prakritik sansadhno का dohan karke cheen ki मुख भूमि का विकास किया बल्कि सांस्कृतिक रूप से समृद्ध यहाँ के मूल निवासियों की जड़ों को भी खोदने का काम किया , बुध mathon को गिरा कर पांच सितारा होटलों का निर्माण किया गया है जिनका मालिकाना हक चीन के मूल निवासी हान जाती लोगों के पास है ,जबकि मूल तिब्बती gharibi और शोषण का shikaar हैं ।


चीन की राजधानी से लेकर तिब्बत मे लहसा तक रेलवे लीन बिछाना और दुर्गम चेत्रों तक अपनी पहुच बनाना चीन और बाकि दुनिया के लिए एक बड़ी उप्लाभ्दी हओ सकती है लेकिन ऐसा करने के पीछे तिब्बत के विकास से कहीं अधिक चीन के अपने व्यापारिक और सामरिक हित जुड़े हुए हैं।


पुँकृतिक रूप से समृद्ध तिब्बत विदेशी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र रहा है जिसमे चीन को बड़ी मात्र मे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है ,इसलिए तिब्बत मे इन सैलानियों के आगमन को सुगम बनने और अपने नियंत्रण को और मज़बूत रखने की दृष्टि से ही इस रेल पटरी का निर्माण किया गया .किसी समय मे जिस प्रकार ब्रिटेन ने अपने उपनिवेशो का दोहन और वहाँ के लोगों का शोषण किया था आज उसी प्रकार चीन अपने विकास की कीमत कमज़ोर राष्ट्रों से वसूल कर रहा है ।


केवल तिब्बत ही नही चीन ने अपनी उर्जा सम्बन्धी आव्शाक्ताओ को पूरा करने ,कच्चे तेल ,गैस और खनिज की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए,प्राकृतिक संसाधनों जैसे तेल ,गैस ,खनिज से समृद्ध कमज़ोर और ग्रह युद्ध के शिकार छोटे-छोटे अफ्रीकी देशों की असवेधानिक ताक़तों को खुल कर पैसा और हतियार उपलब्ध करवाए जिसके परिणाम स्वरूप इन राष्ट्रों के कमज़ोर निवासियों का बड़ी संख्या मे नरसंहार किया गया ,बचे हुए लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ा । यू अन ओ की रिपोर्ट मे इस बात का खुलासा किया गया है की इन राष्ट्रों मे निवास करने वाली जातियाँ बड़े पैमाने पर नरसंहार,शोषण ,भुखमरी और कुपोषण का शिकार हुई है और इसका सबसे बड़ा कारन यहाँ की असंवैधानिक ताक़तों को चीन जैसे राष्ट्रों का समर्थन रहा है ।


चीन शुरू से एक साम्राज्यवादी देश रहा है जिसका एक मात्र लक्ष अपने छेत्र और ताक़त का vistaar करना है कीमत चाहे जो भी ho

खेल से खिलवाड़

मुझे क्रिकेट मे कैरियर बनाना है ।
बस बल्ला ही तो घुमाना है।
राष्ट्रीय खेल न सही पर इसी का ज़माना है ।
कौन सा मुझे ओलमपिक खेलने जाना है ।
वैसे भी हॉकी मे बड़ी मारा मारी है ।
पैसे देकर खेलने की आती बारी है ।
अच्छे खिलाड़ी मुफलिसी मे जीते हैं ।
और जोड़-तोड़ वाले मजे से घी पीते हैं ।
गिल को गिला नहीं खेल कहीं भी जाए ।
ऐसे हालत मे और किया भी क्या जाए ।
कोई ज्योतिकुमारण जब तक इसकी सेवा करेगा।
अपना राष्ट्रीय खेल यूही तिल-तिल मरेगा ।
फिर किसी और पर दोष मढ़ दिया जाएगा ।
कुछ को निकाल कर पल्ला झाड़ लिया जाएगा