समय हो गया

Wednesday, August 27, 2008

अहमद फ़राज़-'बुझ गया चिराग'


१४ जनवरी १९३१ को नव्शेरा पाकिस्तान मे एक बच्चे की विलादत हुई .इस बच्चे की सलाहियतों ने इसे आम से ख़ास बना दिया .इनके वालिद ने इनका नाम अहमद रखा जो आगे चल कर अहमद फ़राज़ के नाम से मशहूर हुए .आप ने पेशावर यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल की .उर्दू और पर्शियन मे आपको महारत हासिल थी .आपकी शाएरी मे उस दौर के हालात का तफ्सेरा भी है और खुशनूदगी भी .अली सरदार जाफरी और फैज़ अहमद फैज़ जैसे शायेरों के साथ आपका नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है.२४ अगस्त २००८ को वाक़े अहमद फ़राज़ की वफ़ात अदबी माशरे के लिए ग़म का बाएस है ।


कठिन है राहगुज़र थोरी दूर साथ चलोबहुत करा है सफर थोडी दूर साथ चलो
(kaThin : difficult; raahguzar : path)
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है मैं जानता हूँ मगर थोडी दूर साथ चलो
नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नही बड़ा मज़ा हो अगर थोडी दूर साथ चलो
ये एक शब् की मुलाक़ात भी ग़नीमत हैकिस है कल की ख़बर , थोरी duur saath chalo
अभी तो जाग रहे हैं चिराघ राहों के अभी है दूर सहर थोडी दूर साथ चलो
(sahar : dawn)
तवाफे मंजिले जानां हमें भी करना है “फ़राज़ ” तुम भी agar थोडी दूर साथ चलो
tavaaf-e-manzil-e-jaanaaN : circumabulation of the house of beloved)
Ahmed Faraz

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