२७ तारीख से लेकर आज तक मई सोंचता चला आ रहा हूँ कि बेनजीर कि हत्या से किसका फयेदा हो सकता है । बहोत सोंचने पर कई सवाल सामने आये पहला ये कि अगर मुशर्रफ़ ने बेनजीर कि हत्या करवाई तो इसमे मुश का क्या फयेदा था तो समझ मे यह आया कि वर्दी छोड़ने, लोकतंत्र कि बहाली के लिए चुनाव कि घोषणा करने और बेनजीर कि वतन वापसी के बाद मुश को यह एहसास हो गया था कि भुट्टो कि पार्टी बहुमत से आ जायेगी और फिर उनके ऊपर लगाम कसने कि कोशिश की जाएगी आपनी कुर्सी और ताक़त को मुश किसी भी हाल में खोना नही चाहते .नवाज़ शरीफ तो पहले ही अयोग्य घोषित किये जा चुके है इसलिए उनसे कोई खतरा नही था ,उनके लिए सबसे बड़ा खतरा अगर कोई था तो वह बेनजीर ही थी ,क्योकि वह मुश कि शर्तो को मानने के लिए तैयार नही थी। अवाम का भरोसा तो वह पहले ही खो चुके थे अब ताक़त भी जाने वाली थी .इधर बेनजीर आपनी जान की परवाह न करते हुए ज़ोर-शोर से चुनाओ प्रचार में जुट गई थी .मुश के लिए खतरा बढता जा रहा था .अब एक ही रास्ता था कि बेनजीर को ख़त्म कर दिया जाये ,तशाद्दुद बढ़ने पर दोबारा ऎमर्जेंसी लगा दी जाये और अपनी ताक़त को बरक़रार रखा जाये.
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