समय हो गया

Monday, January 21, 2008

मेरी नज़र

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को ख़बर na ho
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो
मेरे बाजुओं में थकी-थकी, अभी मह्व-ए-ख़्वाब है चाँदनी न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के यूँ ही साथ-साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

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