समय हो गया

Wednesday, January 9, 2008

फिक्र कि सोंच

सोंचो सोंचने से फिक्र बढ़ती है और जब फिक्र बढ़ती है तो रास्ते हमवार होते जाते हैं .इतने दिनों मे मैंने यही सीखा है कि हममे से हर एक का वजूद किसी खास काम को अंजाम देने के लिए है अब ये हमे खुद ही तय करना है कि उस काम को पूरा करने के लिए कौन सा रास्ता इख्तेयार किया जाए .ये रास्ता तय करना ही सबसे मुश्किल और समझदारी का काम है .इसलिए ऐ मेरे दोस्त तमाम दुसरे काम छोड़ कर तुम सिर्फ अपने मकसद को पूरा करने मे जुट जाओ क्यूंकि वक़्त बहोत कम है और काम बहोत ज्यादा .

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